The Importance of Expression and the Evolution of Language

अभिव्यक्ति का महत्त्व और भाषा के विकास में परिवर्तन

मनुष्य के समाज में भाषा और अभिव्यक्ति का विशेष स्थान है। यह केवल विचारों और भावनाओं को व्यक्त करने का माध्यम ही नहीं, बल्कि संस्कृति, परंपरा और समाज के विकास का भी एक अभिन्न अंग है। समय के साथ भाषा और उसकी शब्दावली में परिवर्तन आता है। आज के आधुनिक जीवन में भाषा के संक्षिप्त रूप, अभिव्यक्तियों में कमी और पारंपरिक मुहावरों के लुप्त होने की प्रवृत्ति देखी जा रही है। यह परिवर्तन कहीं न कहीं समाज और संस्कृति पर भी प्रभाव डाल रहा है।

अभिव्यक्ति का जीवन में महत्त्व

अभिव्यक्ति केवल आपसी संवाद का साधन नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज, परंपराओं और संस्कृति का भी वाहक है। साहित्य, रीति-रिवाज, इतिहास, त्योहार, समाज में महिलाओं की स्थिति और समाज की सोच को भाषा के माध्यम से ही व्यक्त किया जाता है। भाषा केवल शब्दों का समूह नहीं होती, बल्कि यह एक पूरी सभ्यता को परिभाषित करती है। विभिन्न भाषाओं में अलग-अलग संदर्भों में अलग-अलग शब्दों और अभिव्यक्तियों का विकास हुआ है, जो यह दर्शाता है कि भाषा इंसानी संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा है।

शैली और शब्द निर्माण का विकास

पुराने समय में जीवन अपेक्षाकृत सरल था। लोग प्रकृति के साथ अधिक जुड़े रहते थे, आधुनिक तकनीक का प्रभाव बहुत सीमित था और इस कारण भाषा में गहराई और विस्तार अधिक था। लंबे और विस्तृत शब्द बनते थे। शब्दों के निर्माण और उनके प्रयोग में अर्थ की विविधता हुआ करती थी। हर शब्द अपने साथ एक कहानी, भावना और ऐतिहासिक संदर्भ लिए होता था।

हर शब्द की अपनी कहानी – जब हमारा मस्तिष्क कोई नया शब्द ग्रहण करता है, तो वह उसके उपयोग, अर्थ, भावनात्मक गहराई, उससे जुड़े अन्य शब्दों और दूसरे पहलुओं को भी समझता है। इसलिए शब्द केवल संचार का माध्यम नहीं, बल्कि अनुभव और ज्ञान का संग्रह भी होते हैं।

शब्द निर्माण की प्रक्रिया – शब्द का मतलब है अर्थपूर्ण और विशिष्ट ध्वनियों का संयोजन। भाषा में नए शब्दों का निर्माण धीरे-धीरे होता है और यह समाज के जीवनशैली, परिश्रम, मौजूदा भाषा, नये व्यवसाय, नई भाषा के मेल और सामाजिक बदलावों से जुड़ा होता है। समय के साथ-साथ मौजूदा शब्दों का भी सवरूप बदलता है और नये शब्द भी बनते हैं। शब्दों में लय और ध्वनि का विशेष महत्व है, जिससे भाषा की मधुरता बनी रहती थी।

तेज़ जीवन शैली और भाषा पर प्रभाव

आधुनिक समय की तेज़ भागदौड़ वाली जीवनशैली ने भाषा और शब्दों पर भी असर डाला है। विशेष रूप से कॉर्पोरेट जीवन और डिजिटल संवाद के बढ़ते प्रभाव ने शब्दों को छोटा कर दिया है।

संक्षिप्त शब्दों का बढ़ता उपयोग – तेज़ जीवनशैली के कारण आजकल लोग संवाद में संक्षिप्त रूपों का अधिक उपयोग करने लगे हैं। सोशल मीडिया, टेक्स्टिंग और व्यावसायिक संचार में छोटे शब्दों और संक्षिप्त संकेतों का अधिक प्रयोग हो रहा है।

कॉर्पोरेट संस्कृति और नई शब्दावली – कॉर्पोरेट जगत में एक नई शब्दावली विकसित हो रही है, लेकिन यह पारंपरिक भाषा की तुलना में अधिक संक्षिप्त होती जा रही है। यह संचार को तेज़ बनाती है, लेकिन इससे भाषा की गहराई और विस्तार प्रभावित हो रहे हैं।

दीर्घ शब्दों का लोप – लंबे और विस्तृत शब्दों के कम उपयोग के कारण धीरे-धीरे लोग उन्हें भूलने लगे हैं। यह भाषा के विकास को सीमित और सांस्कृतिक विरासत को कमज़ोर करता है।

मुहावरों और पारंपरिक अभिव्यक्तियों का लोप

भाषा केवल संचार का माध्यम नहीं, बल्कि इसमें सदियों का अनुभव और ज्ञान संचित रहता है। मुहावरे और पारंपरिक अभिव्यक्तियाँ किसी भी भाषा की बौद्धिक और सांस्कृतिक धरोहर होती हैं।

मुहावरों का विकास और उनका महत्त्व – मुहावरे किसी भी भाषा के ऐतिहासिक अनुभव, जनमानस की भावनाएँ, सामाजिक परंपराएँ, विवेक और ज्ञान का समावेश होते हैं। वे भाषा को अधिक सजीव और प्रभावशाली बनाते हैं। मुहावरे विवेक से भरपूर होते हैं, सालों से चली आ रही सभ्यता का विवेक इनमें शामिल होता है।

मुहावरों का लुप्त होना – आधुनिक समय में पारंपरिक मुहावरों और कहावतों का प्रयोग कम हो चुका है। युवा पीढ़ी अब किताबों, शास्त्रीय साहित्य और पुराने लोककथाओं से दूर होती जा रही है, जिससे इनका धीरे-धीरे लोप हो रहा है। युवा पीढ़ी अब मुहावरे ना तो जानती है और ना इनके प्रयोग में कोई रुचि रखती है।

भाषा का सांस्कृतिक क्षरण – यदि समाज में मुहावरों और पारंपरिक शब्दावली का उपयोग बंद हो जाता है, तो भाषा अपनी सांस्कृतिक गहराई खो देती है। पुरानी पीढ़ी इन्हें अब भी इस्तेमाल करती है, लेकिन उनके साथ बैठने, उनकी बातें सुनने का समय नई पीढ़ी के पास कहाँ। इसलिए नई पीढ़ी इनसे दूर होती जा रही है। समाज अब भाषा को महत्व देना छोड़ चुका है।

भविष्य में भाषा और अभिव्यक्ति की स्थिति

आज के समय में बहुभाषिकता और वैश्विक संचार का महत्त्व बढ़ रहा है। लोग नई भाषाएँ सीखकर अंतरराष्ट्रीय अवसरों की ओर बढ़ रहे हैं, लेकिन यह आवश्यक है कि वे अपनी मातृभाषा और सांस्कृतिक जड़ों से कट न जाएँ। अपनी भाषा छोड़ कर दूसरी भाषा सीखने में कोई समझदारी नहीं, दोनों को साथ ले कर चला जा सकता है।

भाषा का मानसिक विकास में योगदान – भाषा मस्तिष्क के विकास में एक प्रमुख भूमिका निभाती है। मज़बूत भाषाई जड़ें व्यक्ति को बेहतर सोचने, निर्णय लेने और समस्या समाधान करने में मदद करती हैं।

गहरी जड़ें और वैश्विक प्रतिस्पर्धा – जिस व्यक्ति की जड़ें मज़बूत होती हैं, वह कहीं भी जाकर अपने ज्ञान और कौशल का उपयोग कर सकता है। यदि हम अपनी भाषा और संस्कृति को संरक्षित रखें, तो हम वैश्विक स्तर पर भी सफल हो सकते हैं। 

निष्कर्ष

भाषा और अभिव्यक्ति केवल संवाद का साधन नहीं, बल्कि समाज और संस्कृति का एक आवश्यक घटक हैं। समय के साथ भाषा में परिवर्तन आना स्वाभाविक है मगर आज के समय में ये कुछ ज़्यादा ही तेज़ी से हो रहा है, लेकिन यदि इस परिवर्तन के कारण भाषा की गहराई, मुहावरों का लोप और सांस्कृतिक क्षरण होने लगे, तो यह चिंता का विषय बन जाता है। हमें अपनी भाषाई धरोहर को संरक्षित करने की दिशा में प्रयास करना चाहिए, ताकि आने वाली पीढ़ियाँ न केवल अपनी संस्कृति को समझें, बल्कि भाषा के व्यापक स्वरूप को भी अपनाएँ। परिवर्तन अवश्यंभावी है, लेकिन यदि हम संतुलन बनाए रखें, तो भाषा और अभिव्यक्ति सदैव जीवंत बनी रहेंगी।